नए निष्कर्षों के अनुसार PM2.5 और विषाक्त गैसों के दीर्घकालिक संपर्क से मातृ तथा बाल स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं
भारत में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता एक बड़ा स्वास्थ्य संकट बनकर उभर रही है, जो गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों पर गंभीर प्रभाव डाल रही है। इंटरनेशनल जर्नल फॉर मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च (IJFMR) में प्रकाशित 100 से अधिक एपिडेमियोलॉजिकल स्टडीज़ की विस्तृत समीक्षा के अनुसार, जहरीली हवा के दीर्घकालिक संपर्क से गर्भावस्था में जटिलताएँ और बच्चों में आजीवन श्वसन संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं।
भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में शामिल है। दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। PM2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की खतरनाक मात्रा प्रतिदिन लाखों लोगों के लिए जोखिम पैदा कर रही है।
समीक्षा के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान प्रदूषित हवा के संपर्क में आने वाली महिलाओं को जटिलताओं का अधिक जोखिम रहता है। शोध में पाया गया है कि उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं में समय से पहले प्रसव और कम जन्म वजन के मामलों में वृद्धि देखी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि अल्ट्रा-फाइन कण रक्त प्रवाह में घुस सकते हैं, ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ाते हैं और प्लेसेंटल कार्य को प्रभावित करते हैं, जिससे भ्रूण तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का प्रवाह बाधित होता है। गर्भावधि उच्च रक्तचाप और प्रीक्लेम्पसिया जैसी स्थितियों में भी प्रदूषण के साथ वृद्धि देखी गई है।
शिशु और छोटे बच्चे सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि शुरुआती उम्र में प्रदूषित हवा के संपर्क से बच्चों में दमा, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों की क्षमता में कमी जैसे मामलों में वृद्धि होती है। नए प्रमाण यह भी दर्शाते हैं कि जन्म से पहले प्रदूषण के संपर्क में आने से कावासाकी रोग का जोखिम बढ़ सकता है। यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर सूजन वाली बीमारी है जो बच्चों की ब्लड वेसल पर असर डालती है।
चिकित्सक चेतावनी देते हैं कि लंबे समय तक प्रदूषण का प्रभाव बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है, जिससे वे कोविड-19 सहित वायरल संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। शोध में न्यूरोलॉजिकल और व्यवहारिक विकास पर संभावित प्रभावों के संकेत भी मिले हैं।
जहाँ शहरी क्षेत्रों में वाहनों और उद्योगों से होने वाला प्रदूषण समस्या बना हुआ है, वहीं ग्रामीण भारत इनडोर वायु प्रदूषण जैसे गंभीर खतरे से जूझ रहा है। करोड़ों घरों में आज भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, उपले और फसल अवशेषों का उपयोग होता है, जिससे घना धुआँ घर के अंदर भर जाता है। इस लगातार होने वाले संपर्क का सबसे अधिक असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ता है। शोध से पता चलता है कि ऐसे घरों के बच्चों में लगातार श्वसन जलन, बार-बार संक्रमण और फेफड़ों की क्षमता में उल्लेखनीय कमी देखी जाती है। उत्तर भारत में पराली जलाने के मौसम में यह समस्या और बढ़ जाती है, जब साँस लेने में दिक्कत और अस्पताल में भर्ती होने के मामलों में तेज़ वृद्धि दर्ज की जाती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ मौजूदा स्थिति को बाहरी और घरेलू—दोनों तरह के वायु प्रदूषण के दोहरे बोझ के रूप में देखते हैं, जो माताओं और बच्चों को असमान रूप से प्रभावित कर रही है। वे चेतावनी देते हैं कि इसका दीर्घकालिक प्रभाव कई पीढ़ियों तक महसूस किया जा सकता है, जिससे पुरानी बीमारियों और विकास संबंधी विकारों का जोखिम बढ़ेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत एक ऐसे मोड़ पर पहुँच रहा है जहाँ प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव अपरिवर्तनीय हो सकते हैं। आवश्यक कदमों में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को मजबूत करना, स्वच्छ ईंधन की पहुँच बढ़ाना, वाहन उत्सर्जन मानकों का कड़ाई से पालन कराना और पराली जलाने को रोकना शामिल है।
शोधकर्ता छोटे शहरों और ग्रामीण जिलों में निगरानी व्यवस्था बेहतर करने की मांग करते हैं। डॉक्टर सलाह देते हैं कि परिवार उच्च प्रदूषण घंटों में बाहर निकलने से बचें, N95 मास्क का उपयोग करें और घरों में वेंटिलेशन को सुधारें।
शोधकर्ता चेतावनी देते हैं कि जहरीली हवा से होने वाला स्वास्थ्य नुकसान मौन लेकिन गंभीर है, जिसका असर आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा। यदि ठोस नीति हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो भारत में श्वसन रोगों, गर्भावस्था जटिलताओं और बच्चों में विकास संबंधी विकारों के मामलों में वृद्धि हो सकती है।
पूरा अध्ययन: “Effects of Long-term Exposure to Air Pollution on Maternal and Child Health”, लेखिका प्रीति चौधरी एवं डॉ. जतिंदर वर्मा द्वारा, प्रकाशित: 14 मार्च 2025
https://www.ijfmr.com/research-paper.php?id=38883
प्रीति चौधरी स्वतंत्र पत्रकार और पर्यावरणीय मुद्दों पर केंद्रित स्कॉलर हैं।































