देश में इस साल सोयाबीन उत्पादन में बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार, चालू खरीफ सीजन (2025-26) में सोयाबीन उत्पादन लगभग 20.5 लाख टन घटकर 105.36 लाख टन रहने का अनुमान है। उत्पादन में कमी के बावजूद सोयाबीन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,328 रुपये प्रति क्विंटल से काफी नीचे गिर गये हैं और किसान 3500-4000 रुपये के भाव पर उपज बेचने को मजबूर हैं।
सोपा ने रकबे में कमी, उत्पादकता में गिरावट और प्रतिकूल मौसम को सोयाबीन उत्पादन में गिरावट के प्रमुख वजह बताया है। चालू खरीफ सीजन (2025) में देश में सोयाबीन की बुवाई 114.56 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई और औसत उत्पादकता 920 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही। जबकि पिछले साल (2024) सोयाबीन 118.32 लाख हेक्टेयर में बोई गई थी और उत्पादन 125.82 लाख टन के साथ औसत उत्पादकता 1,063 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। इस साल सोयाबीन के रकबे में करीब 3 फीसदी की गिरावट आई है।
सोपा के चेयरमैन दवेश जैन ने बताया कि इस बार मौसम की मार से सोयाबीन को भारी नुकसान हुआ। खासकर राजस्थान में भारी बारिश के कारण उत्पादन लगभग आधा रह गया। पीला मोज़ेक वायरस के प्रकोप ने भी कई इलाकों में फसल को प्रभावित किया है।
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन वर्ष 2025-26 के लिए सोयाबीन का एमएसपी 5,328 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जो पिछले साल के एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल से 436 रुपये अधिक है। लेकिन किसानों को एमएसपी में बढ़ोतरी का लाभ नहीं मिल पा रहा है और उन्हें एमएसपी से काफी कम भाव पर फसल बेचनी पड़ रही है।
देश के प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश के कई जिलों में भारी बारिश से सोयाबीन की फसल बर्बाद हुई। ऊपर से किसानों को उपज का सही भाव नहीं मिल पा रहा है। राज्य सरकार ने सोयाबीन किसानों के लिए भावांतर भुगतान योजना शुरू की है जबकि किसान एमएसपी दिलाने की मांग कर रहे हैं। राज्य के कई जिलों में किसान संगठन सोयाबीन के एमएसपी की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के किसान नेता राम इनानिया ने बताया कि किसान सरकार से सोयाबीन का एमएसपी दिलाने की मांग कर रहे हैं लेकिन राज्य सरकार ने भावांतर भुगतान योजना लागू की है। जिससे किसानों के नुकसान की भरपाई नहीं होगी। क्योंकि सरकार मंडियों के मॉडल प्राइस और एमएसपी के अंतर की भरपाई ही करेगी।
देश में खाद्य तेलों का उत्पादन मांग के मुकाबले कम होता है फिर भी किसानों को सोयाबीन जैसी तिलहन फसल का सही दाम नहीं मिल पा रहा है। इससे पीछे असल वजह है खाद्य तेलों का सस्ता आयात। पिछले साल भी किसानों को सोयाबीन का सही दाम नहीं मिला था। यही वजह है कि किसानों का सोयाबीन से मोहभंग हो रहा है और वे मक्का की ओर रुख कर रहे हैं। इस साल सोयाबीन के रकबे में आई कमी इसी का नतीजा है।
भारत अपनी कुल खाद्य तेल आवश्यकता का 60% से अधिक आयात करता है, जिस पर हर साल लगभग 1.70 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा व्यय होता है। खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए देश में सोयाबीन उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है। लेकिन यह तभी संभव होगा जब किसानों को उपज का सही दाम मिलेगा।
