जिस उत्तराखंड की स्थापना पहाड़ केंद्रित विकास के मुद्दों को लेकर हुई थी, उसकी अर्थव्यवस्था सुधारने में राज्य सरकार अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी मैकेंजी की मदद लेगी। यह निर्णय स्वदेशी की बात करने वाले भारतीय जनता पार्टी की धामी सरकार ने लिया है, जिसे लेकर तमाम तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं।
खबर है कि उत्तराखंड सरकार ने अंतरराष्ट्रीय परामर्शदाता कंपनी मैकेंजी को विदेशी निवेश जुटाने और सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में सुधार का जिम्मा दिया है। राज्य सरकार ने कंपनी के साथ दो साल का करार किया है। अगले पांच साल में राज्य की जीडीपी दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में कंपनी सहयोग करेगी। छह माह में उन क्षेत्रों की पहचान की जाएगी, जहां विकास की सबसे अधिक संभवना है और विदेश निवेश जुटाया जा सकता है। इसके अलावा कंपनी राज्य के उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार और अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने के लिए भी काम करेगी।
मैकेंजी दुनिया की प्रमुख परामर्शदाता कंपनियों में शुमार है। लेकिन सवाल यह है कि प्रदेश की आर्थिक नीतियां और अर्थव्यवस्था से जुड़े मामलों में बहुराष्ट्रीय कंपनी का हस्तक्षेप कितना उचित है? अगर अर्थव्यवस्था को उबारने का जिम्मा भी किसी विदेशी कंपनी पर रहेगा तो राज्य का विशाल प्रशासनिक तंत्र और सरकार क्या करेगी? जिस कंपनी को यह जिम्मा दिया गया है, वह राज्य सरकार से कितनी फीस लेगी, इसका खुलासा नहीं किया गया है। अंतत: इस कवायद का बोझ राज्य के करदाताओं के ऊपर ही पड़ेगा।
उत्तराखंड बनने के बाद से राज्य को ऊर्जा प्रदेश, बागवानी प्रदेश, टूरिज्म हब या हर्बल प्रदेश बनाने की बातें होती रही हैं। विदेशी निवेश जुटाने के नाम पर कई कॉनक्लेव और विदेशी टूर आयोजित हुए। लेकिन इन कोशिशों का कोई खास परिणाम नहीं निकला। राज्य में उत्पादकता और रोजगार के अवसर बढ़ाना बड़ी चुनौती है। पलायन जैसी समस्या से भी तभी निपटा जा सकता है। इसमें मैंकेजी कितनी मददगार होगी, यह आने वाले समय में पता चलेगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि राज्य सरकार के इस कदम ने नीतिगत और आर्थिक मामलों में सरकारी तंत्र की अक्षमता और प्राईवेट कंसल्टेंट पर निर्भरता को उजागर कर दिया है।































